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स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ
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अध्याय 63: बाणासुर और भगवान् कृष्ण का युद्ध
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श्लोक 50
श्लोक
10.63.50
इति लब्ध्वाभयं कृष्णं प्रणम्य शिरसासुर: ।
प्राद्युम्निं रथमारोप्य सवध्वो समुपानयत् ॥ ५० ॥
अनुवाद
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इस तरह से बाणासुर ने निडर होकर भगवान् कृष्ण के चरणों में अपना शीश नवाकर प्रणाम किया। तब बाणासुर ने अनिरुद्ध और उनकी पत्नी को उनके रथ पर बैठाया और उन्हें कृष्ण जी के सामने ले आया।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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