श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 63: बाणासुर और भगवान् कृष्ण का युद्ध  »  श्लोक 42
 
 
श्लोक  10.63.42 
 
 
यस्त्वां विसृजते मर्त्य आत्मानं प्रियमीश्वरम् ।
विपर्ययेन्द्रियार्थार्थं विषमत्त्यमृतं त्यजन् ॥ ४२ ॥
 
अनुवाद
 
  अपने इंद्रिय विषयों के लिए, जिनका स्वभाव सर्वथा विपरीत है, आपको, अपनी असली आत्मा, प्रिय मित्र एवं स्वामी को छोड़ने वाला मनुष्य अमृत को छोड़कर विष का पान करता है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.