श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 63: बाणासुर और भगवान् कृष्ण का युद्ध  »  श्लोक 34
 
 
श्लोक  10.63.34 
 
 
श्रीरुद्र उवाच
त्वं हि ब्रह्म परं ज्योतिर्गूढं ब्रह्मणि वाङ्‍मये ।
यं पश्यन्त्यमलात्मान आकाशमिव केवलम् ॥ ३४ ॥
 
अनुवाद
 
  श्री रुद्र ने कहा: तुम ही एकमात्र परम सत्य, परम प्रकाश और ब्रह्म के शब्दों से प्रकट होने वाले गुह्य रहस्य हो। जिनके हृदय निर्मल हैं, वे तुम्हारा दर्शन कर सकते हैं क्योंकि तुम आकाश की तरह निर्मल हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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