श्रीभगवानुवाच
त्रिशिरस्ते प्रसन्नोऽस्मि व्येतु ते मज्ज्वराद् भयम् ।
यो नौ स्मरति संवादं तस्य त्वन्न भवेद् भयम् ॥ २९ ॥
अनुवाद
ईश्वर ने कहा : हे तीन सिर वाले ! मैं तुम पर प्रसन्न हूँ। मेरा ज्वर अस्त्र तुम पर न लगने का वर मिल जाए और फिर जो भी हमारी इस बातचीत को याद रखेगा उसे तुमसे कोई डर न रहे।