श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 63: बाणासुर और भगवान् कृष्ण का युद्ध  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  10.63.28 
 
 
तप्तोऽहं ते तेजसा दु:सहेन
शान्तोग्रेणात्युल्बणेन ज्वरेण ।
तावत्तापो देहिनां तेऽङ्‍‍घ्रिमूलं
नो सेवेरन् यावदाशानुबद्धा: ॥ २८ ॥
 
अनुवाद
 
  मैं आपके उस भयानक ज्वर अस्त्र की दारुण शक्ति से पीडित हूँ जो शीतल होते हुए भी जलाता है। जब तक सब देहधारी प्राणी भौतिक महत्वकांक्षाओं के मोहपाश में बंधे रहेंगे और आपके चरणों की भक्ति से विमुख रहेंगे, तब तक उन्हें कष्ट भोगना पडेगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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