श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 63: बाणासुर और भगवान् कृष्ण का युद्ध  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  10.63.27 
 
 
नानाभावैर्लीलयैवोपपन्नै-
र्देवान् साधून् लोकसेतून् बिभर्षि ।
हंस्युन्मार्गान् हिंसया वर्तमानान्
जन्मैतत्ते भारहाराय भूमे: ॥ २७ ॥
 
अनुवाद
 
  आप विभिन्न भावों से देवताओं, साधुओं और इस संसार के लिए धर्म नियमों को बनाए रखने के लिए लीलाएँ करते हैं। इन लीलाओं से आप उनका भी वध करते हैं जो सही रास्ते से भटक जाते हैं और हिंसा से जीवनयापन करते हैं। निस्संदेह, आपका वर्तमान अवतार पृथ्वी के बोझ को हल्का करने के लिए है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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