श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 63: बाणासुर और भगवान् कृष्ण का युद्ध  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  10.63.26 
 
 
कालो दैवं कर्म जीव: स्वभावो
द्रव्यं क्षेत्रं प्राण आत्मा विकार: ।
तत्सङ्घातो बीजरोहप्रवाह-
स्त्वन्मायैषा तन्निषेधं प्रपद्ये ॥ २६ ॥
 
अनुवाद
 
  समय; भाग्य; कर्म; आत्मा और उसकी प्रवृत्तियाँ; सूक्ष्म भौतिक तत्व; भौतिक शरीर; प्राण वायु; मिथ्या अहंकार; विभिन्न इंद्रियाँ; और जीव के सूक्ष्म शरीर में इन सभी की समग्रता - यह सब आपकी भौतिक माया है, जो बीज और पौधे के अंतहीन चक्र की तरह है। मैं आपकी शरण लेता हूं, जो इस माया का निषेध है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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