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स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ
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अध्याय 63: बाणासुर और भगवान् कृष्ण का युद्ध
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श्लोक 24
श्लोक
10.63.24
माहेश्वर: समाक्रन्दन् वैष्णवेन बलार्दित: ।
अलब्ध्वाभयमन्यत्र भीतो माहेश्वरो ज्वर: ।
शरणार्थी हृषीकेशं तुष्टाव प्रयताञ्जलि: ॥ २४ ॥
अनुवाद
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विष्णुज्वर के सामर्थ्य से हारकर शिवज्वर दुःख से कराह उठा। किंतु कहीं भी आश्रय न पाकर भयभीत शिवज्वर इंद्रियों के ईश्वर भगवान कृष्ण के समक्ष उनकी शरण पाने की आशा से आया। इस प्रकार दोनों हाथ जोड़कर उसने भगवान की स्तुति शुरू की।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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