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स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ
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अध्याय 61: बलराम द्वारा रुक्मी का वध
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श्लोक 37
श्लोक
10.61.37
कलिङ्गराजं तरसा गृहीत्वा दशमे पदे ।
दन्तानपातयत् क्रुद्धो योऽहसद् विवृतैर्द्विजै: ॥ ३७ ॥
अनुवाद
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कलिंग के राजा ने, बलराम जी पर हंसी और अपने दाँत निपोरते हुए भागने की कोशिश की, पर क्रुद्ध बलराम जी ने तुरंत दसवें कदम पर ही उसे पकड़ लिया और उसके सारे दाँत तोड़ दिए।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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