श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 61: बलराम द्वारा रुक्मी का वध  »  श्लोक 27-28
 
 
श्लोक  10.61.27-28 
 
 
तस्मिन् निवृत्त उद्वाहे कालिङ्गप्रमुखा नृपा: ।
द‍ृप्तास्ते रुक्‍मिणं प्रोचुर्बलमक्षैर्विनिर्जय ॥ २७ ॥
अनक्षज्ञो ह्ययं राजन्नपि तद्‌व्यसनं महत् ।
इत्युक्तो बलमाहूय तेनाक्षैर्रुक्‍म्यदीव्यत ॥ २८ ॥
 
अनुवाद
 
  विवाह के बाद कालिंगराज आदि घमंडी राजाओं के समूह ने रुक्मी से कहा, "तुम्हें चाहिए कि बलराम को चौसर में हरा दो। हे राजन्, वे चौसर में निपुण नहीं हैं फिर भी उन्हें इसका व्यसन है।" इस तरह सलाह दिए जाने पर रुक्मी ने बलराम को चुनौती दी और उनके साथ चौसर की बाजी खेलने लगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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