श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 60: रुक्मिणी के साथ कृष्ण का परिहास  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  10.60.12 
 
 
राजभ्यो बिभ्यत: सुभ्रु समुद्रं शरणं गतान् ।
बलवद्भ‍ि: कृतद्वेषान् प्रायस्त्यक्तनृपासनान् ॥ १२ ॥
 
अनुवाद
 
  हे सुन्दर भौंहों वाली, इन राजाओं के भय से हमने समुद्र में शरण ली। हम शक्तिशाली लोगों के दुश्मन बन गए और हमने अपने शाही सिंहासन को लगभग त्याग दिया था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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