श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 59: नरकासुर का वध  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  10.59.7 
 
 
त्रिशूलमुद्यम्य सुदुर्निरीक्षणो
युगान्तसूर्यानलरोचिरुल्बण: ।
ग्रसंस्‍त्रिलोकीमिव पञ्चभिर्मुखै-
रभ्यद्रवत्तार्क्ष्यसुतं यथोरग: ॥ ७ ॥
 
अनुवाद
 
  एक सहस्राब्दी के अंत में सूर्य की आग के अंधा करने वाले, भयावह तेज से चमकता हुआ मुर, अपने पाँच मुँहों से तीनों लोकों को निगलता हुआ प्रतीत हो रहा था। उसने अपना त्रिशूल उठाया और तर्क्ष्य के पुत्र गरुड़ पर वैसे ही झपटा जैसे हमला करता हुआ साँप।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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