श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 57: सत्राजित की हत्या और मणि की वापसी  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  10.57.32 
 
 
देवेऽवर्षति काशीश: श्वफल्कायागताय वै ।
स्वसुतां गान्दिनीं प्रादात् ततोऽवर्षत् स्म काशिषु ॥ ३२ ॥
 
अनुवाद
 
  [बड़े बुजुर्गों ने कहा] पहले, जब इंद्र भगवान ने काशी में बारिश रोक दी थी, तो उस शहर के राजा ने अपनी बेटी गान्दिनी को श्वफल्क को दे दिया था, जो उस समय उससे मिलने आया था। उसके बाद काशी राज्य में तुरंत बारिश हो गई।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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