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अध्याय 57: सत्राजित की हत्या और मणि की वापसी
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श्लोक 30
श्लोक
10.57.30
अक्रूरे प्रोषितेऽरिष्टान्यासन् वै द्वारकौकसाम् ।
शारीरा मानसास्तापा मुहुर्दैविकभौतिका: ॥ ३० ॥
अनुवाद
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अक्रूर की अनुपस्थिति में द्वारका में कई अपशकुन देखे जाने लगे, और इसके अलावा वहाँ के लोग शारीरिक और मानसिक कष्टों से तो परेशान थे ही साथ ही देवताओं तथा प्रकृति के प्रकोपों से भी त्रस्त रहने लगे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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