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अध्याय 57: सत्राजित की हत्या और मणि की वापसी
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श्लोक 17
श्लोक
10.57.17
नमस्तस्मै भगवते कृष्णायाद्भुतकर्मणे ।
अनन्तायादिभूताय कूटस्थायात्मने नम: ॥ १७ ॥
अनुवाद
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मैं उस सर्वोच्च भगवान कृष्ण को नमन करता हूँ, जिनकी हर लीला अद्भुत है। वे परमात्मा हैं, अनंत स्रोत हैं और पूरे ब्रह्मांड के अटल केंद्र हैं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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