नाहमीस्वरयो: कुर्यां हेलनं रामकृष्णयो: ।
को नु क्षेमाय कल्पेत तयोर्वृजिनमाचरन् ॥ १२ ॥
कंस: सहानुगोऽपीतो यद्द्वेषात्त्याजित: श्रिया ।
जरासन्ध: सप्तदश संयुगाद् विरथो गत: ॥ १३ ॥
अनुवाद
[कृतवर्मा बोले] : मैं भगवान कृष्ण और बलराम के विरुद्ध अपराध करने का साहस नहीं कर सकता। जो लोग उन्हें दुख पहुँचाते हैं, वे कैसे सौभाग्यशाली हो सकते हैं? कंस और उसके सभी अनुयायियों ने उनसे शत्रुता की और अपनी संपत्ति और अपने प्राण गंवा दिए और जरासंध, जो सत्रह बार उनसे युद्ध कर चुका है, के पास अब एक रथ भी नहीं बचा है।