भगवानाह न मणिं प्रतीच्छामो वयं नृप ।
तवास्तां देवभक्तस्य वयं च फलभागिन: ॥ ४५ ॥
अनुवाद
भगवान ने सत्राजित से कहा: हे राजन, हम इस मणि को वापस लेना नहीं चाहते। तुम सूर्य भगवान के भक्त हो इसीलिए इसे तुम अपने पास ही रखो। इस तरह हम भी इसका लाभ उठाएँगे।
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध दस के अंतर्गत छप्पन अध्याय समाप्त होता है ।