श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 56: स्यमन्तक मणि  »  श्लोक 45
 
 
श्लोक  10.56.45 
 
 
भगवानाह न मणिं प्रतीच्छामो वयं नृप ।
तवास्तां देवभक्तस्य वयं च फलभागिन: ॥ ४५ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान ने सत्राजित से कहा: हे राजन, हम इस मणि को वापस लेना नहीं चाहते। तुम सूर्य भगवान के भक्त हो इसीलिए इसे तुम अपने पास ही रखो। इस तरह हम भी इसका लाभ उठाएँगे।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध दस के अंतर्गत छप्पन अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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