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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ
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अध्याय 56: स्यमन्तक मणि
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श्लोक 39
श्लोक
10.56.39
स चातिव्रीडितो रत्नं गृहीत्वावाङ्मुखस्तत: ।
अनुतप्यमानो भवनमगमत् स्वेन पाप्मना ॥ ३९ ॥
अनुवाद
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सत्राजित ने बहुत शर्मिंदगी के साथ मणि को ले लिया और घर लौट गया, लेकिन वह अपने पापपूर्ण आचरण के लिए हर समय पश्चाताप की भावना से भरा रहा।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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