श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 56: स्यमन्तक मणि  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  10.56.17 
 
 
भगवांस्तदुपश्रुत्य दुर्यशो लिप्तमात्मनि ।
मार्ष्टुं प्रसेनपदवीमन्वपद्यत नागरै: ॥ १७ ॥
 
अनुवाद
 
  जब भगवान श्री कृष्ण ने ये अफवाह सुनी, तो उन्होंने अपनी कीर्ति पर लगे दाग को हटाना चाहा। अतः, उन्होंने द्वारिका के कुछ नागरिकों को साथ लेकर प्रसेन के रास्ते को खोजने के लिए प्रस्थान किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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