श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 54: कृष्ण-रुक्मिणी विवाह  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  10.54.8 
 
 
हस्ता: सासिगदेष्वासा: करभा ऊरवोऽङ्‍‍घ्रय: ।
अश्वाश्वतरनागोष्ट्रखरमर्त्यशिरांसि च ॥ ८ ॥
 
अनुवाद
 
  चारों ओर जाँघें, पाँव और ऊँगलियाँ न होने वाले हाथों के साथ-साथ तलवार, गदा और धनुष पकड़े हुए हाथ और घोड़े, गधे, हाथी, ऊँट, जंगली गधे और मनुष्यों के सिर भी पड़े थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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