श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 53: कृष्ण द्वारा रुक्मिणी का अपहरण  »  श्लोक 57
 
 
श्लोक  10.53.57 
 
 
तं मानिन: स्वाभिभवं यश:क्षयं
परे जरासन्धमुखा न सेहिरे ।
अहो धिगस्मान् यश आत्तधन्वनां
गोपैर्हृतं केशरिणां मृगैरिव ॥ ५७ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान के शत्रु राजा, जिनमें सबसे प्रमुख जरासंध था, इस अपमानजनक हार को बरदाश्त न कर सके। वे चीख पड़े, “अरे हम पर लानत है! जब कि हम इतने बलशाली धनुर्धर हैं, और इन ग्वालों ने हमारे साथ गायों के झुंड चुराने जैसा अपमानजनक व्यवहार किया है, ठीक वैसे ही जैसे कोई सीधा-सादा जानवर, सिंह का सम्मान चुरा ले।”
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध दस के अंतर्गत तिरेपन अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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