तं मानिन: स्वाभिभवं यश:क्षयं
परे जरासन्धमुखा न सेहिरे ।
अहो धिगस्मान् यश आत्तधन्वनां
गोपैर्हृतं केशरिणां मृगैरिव ॥ ५७ ॥
अनुवाद
भगवान के शत्रु राजा, जिनमें सबसे प्रमुख जरासंध था, इस अपमानजनक हार को बरदाश्त न कर सके। वे चीख पड़े, “अरे हम पर लानत है! जब कि हम इतने बलशाली धनुर्धर हैं, और इन ग्वालों ने हमारे साथ गायों के झुंड चुराने जैसा अपमानजनक व्यवहार किया है, ठीक वैसे ही जैसे कोई सीधा-सादा जानवर, सिंह का सम्मान चुरा ले।”
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध दस के अंतर्गत तिरेपन अध्याय समाप्त होता है ।