श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 53: कृष्ण द्वारा रुक्मिणी का अपहरण  »  श्लोक 44
 
 
श्लोक  10.53.44 
 
 
आसाद्य देवीसदनं धौतपादकराम्बुजा ।
उपस्पृश्य शुचि: शान्ता प्रविवेशाम्बिकान्तिकम् ॥ ४४ ॥
 
अनुवाद
 
  देवी के मंदिर पहुँचकर रुक्मिणी ने पहले अपने कमल के समान चरणों और हाथों को धोया और फिर पवित्रता के लिए जल ग्रहण किया। इस प्रकार पवित्र और शांत भाव से वे माता अंबिका के समक्ष उपस्थित हुईं।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.