श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 53: कृष्ण द्वारा रुक्मिणी का अपहरण  »  श्लोक 42-43
 
 
श्लोक  10.53.42-43 
 
 
नानोपहारबलिभिर्वारमुख्या: सहस्रश: ।
स्रग्गन्धवस्‍त्राभरणैर्द्विजपत्न्‍य: स्वलङ्कृता: ॥ ४२ ॥
गायन्त्यश्च स्तुवन्तश्च गायका वाद्यवादका: ।
परिवार्य वधूं जग्मु: सूतमागधवन्दिन: ॥ ४३ ॥
 
अनुवाद
 
  दुलहन के पीछे हजारों प्रमुख गणिकाएँ थीं जो नाना प्रकार की भेंटें और उपहार लेकर पीछे-पीछे चल रही थीं। साथ ही, वहाँ ब्राह्मणों की सजी-धजी पत्नियाँ गीत गा रही थीं और स्तुतियाँ कर रही थीं। वे माला, सुगन्ध, वस्त्र और आभूषण की भेंटें लिए थीं। इसके अलावा वहाँ पेशेवर गवैये, संगीतज्ञ, सूत (कथाकार), मागध (गीतकार) और वन्दीजन भी थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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