श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 53: कृष्ण द्वारा रुक्मिणी का अपहरण  »  श्लोक 40-41
 
 
श्लोक  10.53.40-41 
 
 
पद्‍भ्यां विनिर्ययौ द्रष्टुं भवान्या: पादपल्ल‍वम् ।
सा चानुध्यायती सम्यङ्‍मुकुन्दचरणाम्बुजम् ॥ ४० ॥
यतवाङ्‍मातृभि: सार्धं सखीभि: परिवारिता ।
गुप्ता राजभटै: शूरै: सन्नद्धैरुद्यतायुधै: ।
मृदङ्गशङ्खपणवास्तूर्यभेर्यश्च जघ्निरे ॥ ४१ ॥
 
अनुवाद
 
  रुक्मिणी मौनव्रत धारण करके देवी भवानी के चरण दर्शन करने के लिए पैदल चल पड़ी। माताएँ तथा सखियाँ उनके साथ थीं और राजा के बहादुर सैनिकों द्वारा उनकी सुरक्षा की जा रही थी, जो अपने हाथों में हथियार उठाए सन्नद्ध थे। रुक्मिणी का मन केवल कृष्ण के चरणकमलों में ही लगा हुआ था। मार्ग में मृदंग, शंख, पणव, तुरही और अन्य वाद्य यंत्र बज रहे थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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