रुक्मिणी मौनव्रत धारण करके देवी भवानी के चरण दर्शन करने के लिए पैदल चल पड़ी। माताएँ तथा सखियाँ उनके साथ थीं और राजा के बहादुर सैनिकों द्वारा उनकी सुरक्षा की जा रही थी, जो अपने हाथों में हथियार उठाए सन्नद्ध थे। रुक्मिणी का मन केवल कृष्ण के चरणकमलों में ही लगा हुआ था। मार्ग में मृदंग, शंख, पणव, तुरही और अन्य वाद्य यंत्र बज रहे थे।