श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 53: कृष्ण द्वारा रुक्मिणी का अपहरण  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  10.53.3 
 
 
तामानयिष्य उन्मथ्य राजन्यापसदान् मृधे ।
मत्परामनवद्याङ्गीमेधसोऽग्निशिखामिव ॥ ३ ॥
 
अनुवाद
 
  वह अपने आपको एकमात्र मेरे प्रति ही अर्पित कर चुकी है और उसका सौन्दर्य दोषरहित है। उन निकम्मे राजाओं को युद्ध में उसी तरह पीसकर मैं उसे यहाँ लाऊँगा जिस तरह लकड़ी से आग निकाली जाती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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