श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 53: कृष्ण द्वारा रुक्मिणी का अपहरण  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  10.53.26 
 
 
एवं चिन्तयती बाला गोविन्दहृतमानसा ।
न्यमीलयत कालज्ञा नेत्रे चाश्रुकलाकुले ॥ २६ ॥
 
अनुवाद
 
  इस प्रकार विचार करते हुए, जिस युवती का मन कृष्ण ने चुरा लिया था, उसने यह सोचकर कि अब भी समय है, अपनी आँखें बंद कर लीं जो अश्रुपूर्ण थी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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