श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 53: कृष्ण द्वारा रुक्मिणी का अपहरण  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  10.53.25 
 
 
दुर्भगाया न मे धाता नानुकूलो महेश्वर: ।
देवी वा विमुखी गौरी रुद्राणी गिरिजा सती ॥ २५ ॥
 
अनुवाद
 
  मैं अति दुर्भाग्यशाली हूँ क्योंकि सृष्टा विधाता मेरे अनुकूल नहीं है, न ही महेश्वर (शिवजी) हैं। अथवा शायद शिव-पत्नी देवी जो गौरी, रुद्राणी, गिरिजा तथा सती नाम से विख्यात हैं, मेरे विपरीत हो गई हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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