श्रुत्वैतद् भगवान् रामो विपक्षीयनृपोद्यमम् ।
कृष्णं चैकं गतं हर्तुं कन्यां कलहशङ्कित: ॥ २० ॥
बलेन महता सार्धं भ्रातृस्नेहपरिप्लुत: ।
त्वरित: कुण्डिनं प्रागाद् गजाश्वरथपत्तिभि: ॥ २१ ॥
अनुवाद
जब बलराम जी ने विपक्षी राजाओं की इन तैयारियों के विषय में सुना और साथ ही साथ ये भी सुना कि कैसे भगवान कृष्ण सिर्फ दुल्हन का हरण करने के लिए अकेले ही निकल पड़े हैं तो उन्हें चिंता होने लगी कि कहीं युद्ध न छिड़ जाए। इसलिए, वे अपने भाई के प्रति स्नेह से भरकर अपनी विशाल सेना के साथ जल्द से जल्द कुंडिन के लिए रवाना हो गए। उनकी सेना में पैदल सैनिकों के साथ-साथ हाथी, घोड़े और रथ पर सवार सैनिक भी थे।