श्रीशुक उवाच
वैदर्भ्या: स तु सन्देशं निशम्य यदुनन्दन: ।
प्रगृह्य पाणिना पाणिं प्रहसन्निदमब्रवीत् ॥ १ ॥
अनुवाद
शुकदेव गोस्वामी ने कहा: इस तरह कुमारी वैदर्भी का गुप्त संदेश सुनकर यदुनंदन ने ब्राह्मण का हाथ अपने हाथ में ले लिया और मुस्कुराते हुए उससे इस प्रकार बोले।