श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 52: भगवान् कृष्ण के लिए रुक्मिणी-संदेश  »  श्लोक 44
 
 
श्लोक  10.52.44 
 
 
ब्राह्मण उवाच
इत्येते गुह्यसन्देशा यदुदेव मयाहृता: ।
विमृश्य कर्तुं यच्चात्र क्रियतां तदनन्तरम् ॥ ४४ ॥
 
अनुवाद
 
  ब्राह्मण बोला, हे यदुनाथ! मैं यह गुप्त संदेश अपने साथ लाया हूँ। कृपया सोच-विचार करके देखें कि इन परिस्थितियों में क्या किया जाना चाहिए और उसे तुरंत करें।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध दस के अंतर्गत बावन अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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