पूर्तेष्टदत्तनियमव्रतदेवविप्र-
गुर्वर्चनादिभिरलं भगवान् परेश: ।
आराधितो यदि गदाग्रज एत्य पाणिं
गृह्णातु मे न दमघोषसुतादयोऽन्ये ॥ ४० ॥
अनुवाद
यदि मैंने पुण्य कर्मों, यज्ञों, दान, अनुष्ठानों और व्रतों के साथ-साथ देवताओं, ब्राह्मणों और गुरुओं की आराधना द्वारा भगवान् की यथाविधि पूजा की हो तो हे गदाग्रज, आप आकर मेरा हाथ ग्रहण करें और दमघोष का पुत्र या कोई अन्य ग्रहण न करें।