श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 52: भगवान् कृष्ण के लिए रुक्मिणी-संदेश  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  10.52.35 
 
 
यतस्त्वमागतो दुर्गं निस्तीर्येह यदिच्छया ।
सर्वं नो ब्रूह्यगुह्यं चेत् किं कार्यं करवाम ते ॥ ३५ ॥
 
अनुवाद
 
  दुर्गम समुद्र को पार करके आप कहाँ से और किस उद्देश्य से पधारे हैं? यदि यह कोई रहस्य नहीं है, तो हमें बताएँ और यह कहें कि हम आपके लिए क्या कर सकते हैं?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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