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अध्याय 52: भगवान् कृष्ण के लिए रुक्मिणी-संदेश
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श्लोक 32
श्लोक
10.52.32
असन्तुष्टोऽसकृल्लोकानाप्नोत्यपि सुरेश्वर: ।
अकिञ्चनोऽपि सन्तुष्ट: शेते सर्वाङ्गविज्वर: ॥ ३२ ॥
अनुवाद
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असंतुष्ट ब्राह्मण स्वर्ग का राजा होने पर भी एक स्थान से दूसरे स्थान पर बेचैनी से घूमता रहता है। लेकिन संतुष्ट ब्राह्मण, अपने पास कुछ न होने पर भी शांति से आराम करता है और उसके सभी अंग कष्ट से मुक्त रहते हैं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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