श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 52: भगवान् कृष्ण के लिए रुक्मिणी-संदेश  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  10.52.30 
 
 
कच्चिद् द्विजवरश्रेष्ठ धर्मस्ते वृद्धसम्मत: ।
वर्तते नातिकृच्छ्रेण सन्तुष्टमनस: सदा ॥ ३० ॥
 
अनुवाद
 
  [भगवान ने कहा]: श्रेष्ठ ब्राह्मण, क्या आपके धार्मिक अनुष्ठान, जो वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा अनुमोदित हैं, बिना किसी बड़ी कठिनाई के जारी हैं? क्या आपका मन सदैव पूर्णतः संतुष्ट रहता है?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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