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अध्याय 52: भगवान् कृष्ण के लिए रुक्मिणी-संदेश
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श्लोक 20
श्लोक
10.52.20
ब्रह्मन् कृष्णकथा: पुण्या माध्वीर्लोकमलापहा: ।
को नु तृप्येत शृण्वान: श्रुतज्ञो नित्यनूतना: ॥ २० ॥
अनुवाद
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हे ब्राह्मण! अनुभवी श्रोता कौन ऐसा होगा जो श्रीकृष्ण की पवित्र, मनोरम और सदा नवीन कथाओं को सुनकर तृप्त हो जाएगा, जो संसार के पापों को मिटाने वाली हैं?
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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