श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 52: भगवान् कृष्ण के लिए रुक्मिणी-संदेश  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  10.52.13 
 
 
अलक्ष्यमाणौ रिपुणा सानुगेन यदूत्तमौ ।
स्वपुरं पुनरायातौ समुद्रपरिखां नृप ॥ १३ ॥
 
अनुवाद
 
  अपने शत्रु या उसके अनुयायियों की दृष्टि में न पड़ते हुए, हे राजन्, वे दोनों यदु श्रेष्ठ अपनी द्वारका नगरी में लौट आये, जिसकी रक्षा-खाई समुद्र ही थी।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.