श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 51: मुचुकुन्द का उद्धार  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  10.51.8 
 
 
पलायनं यदुकुले जातस्य तव नोचितम् ।
इति क्षिपन्ननुगतो नैनं प्रापाहताशुभ: ॥ ८ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान का पीछा करते हुए वह यवन उन पर यह कह कर अपमान कर रहा था, "तुमने यदुवंश में जन्म ले रखा है, तुम्हारे लिए इस तरह भागना उचित नहीं है!" परंतु कालयवन भगवान कृष्ण तक नहीं पहुँच पाया क्योंकि उसके पाप कर्म-फल अभी धुले नहीं थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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