श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 51: मुचुकुन्द का उद्धार  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  10.51.20 
 
 
वरं वृणीष्व भद्रं ते ऋते कैवल्यमद्य न: ।
एक एवेश्वरस्तस्य भगवान् विष्णुरव्यय: ॥ २० ॥
 
अनुवाद
 
  "मंगल हो तुम्हारा! अब तुम हमसे कोई भी वरदान मांग सकते हो, लेकिन मुक्ति के सिवाय, क्योंकि मुक्ति तो सिर्फ एकमात्र अक्षय भगवान विष्णु ही प्रदान कर सकते हैं।"
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.