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श्लोक 20
श्लोक
10.51.20
वरं वृणीष्व भद्रं ते ऋते कैवल्यमद्य न: ।
एक एवेश्वरस्तस्य भगवान् विष्णुरव्यय: ॥ २० ॥
अनुवाद
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"मंगल हो तुम्हारा! अब तुम हमसे कोई भी वरदान मांग सकते हो, लेकिन मुक्ति के सिवाय, क्योंकि मुक्ति तो सिर्फ एकमात्र अक्षय भगवान विष्णु ही प्रदान कर सकते हैं।"
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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