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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ
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अध्याय 50: कृष्ण द्वारा द्वारकापुरी की स्थापना
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श्लोक 54
श्लोक
10.50.54
सुधर्मां पारिजातं च महेन्द्र: प्राहिणोद्धरे: ।
यत्र चावस्थितो मर्त्यो मर्त्यधर्मैर्न युज्यते ॥ ५४ ॥
अनुवाद
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इन्द्र श्री कृष्ण के लिए सुधर्मा सभा ले आए, जिसके भीतर खड़ा मनुष्य मृत्यु के नियमों से प्रभावित नहीं होता। इन्द्र ने पारिजात वृक्ष भी लेकर आकर दे दिया।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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