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अध्याय 50: कृष्ण द्वारा द्वारकापुरी की स्थापना
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श्लोक 46
श्लोक
10.50.46
यवनोऽयं निरुन्धेऽस्मानद्य तावन्महाबल: ।
मागधोऽप्यद्य वा श्वो वा परश्वो वागमिष्यति ॥ ४६ ॥
अनुवाद
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"यह यवन तो हमें पहले से घेरे हुए है और उपर से शीघ्र ही, यदि आज नहीं, तो कल या परसों तक मगध का बलशाली राजा यहाँ आ पहुँचेगा।"
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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