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अध्याय 50: कृष्ण द्वारा द्वारकापुरी की स्थापना
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श्लोक 44
श्लोक
10.50.44
रुरोध मथुरामेत्य तिसृभिर्म्लेच्छकोटिभि: ।
नृलोके चाप्रतिद्वन्द्वो वृष्णीन्श्रुत्वात्मसम्मितान् ॥ ४४ ॥
अनुवाद
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मथुरा आकर इस यवन ने तीन करोड़ म्लेच्छ सैनिकों के साथ इस नगरी में घेराबंदी कर दी। उसे कभी भी अपने से लड़ने लायक कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं मिला था पर उसने सुना था कि वृष्णिजन उसके बराबर के हैं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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