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स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ
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अध्याय 50: कृष्ण द्वारा द्वारकापुरी की स्थापना
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श्लोक 39
श्लोक
10.50.39
निचीयमानो नारीभिर्माल्यदध्यक्षताङ्कुरै: ।
निरीक्ष्यमाण: सस्नेहं प्रीत्युत्कलितलोचनै: ॥ ३९ ॥
अनुवाद
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नगर की स्त्रियाँ प्रेम के वशीभूत होकर भगवान् को स्नेहयुक्त दृष्टि से निहार रही थीं। उनके नेत्र प्रेमवश खूब खुले हुए थे। उन्होंने भगवान् पर फूल-मालाएँ, दही, अक्षत और नूतन अंकुरों की वर्षा की।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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