श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 50: कृष्ण द्वारा द्वारकापुरी की स्थापना  »  श्लोक 29
 
 
श्लोक  10.50.29 
 
 
स्थित्युद्भ‍वान्तं भुवनत्रयस्य य:
समीहितेऽनन्तगुण: स्वलीलया ।
न तस्य चित्रं परपक्षनिग्रह-
स्तथापि मर्त्यानुविधस्य वर्ण्यते ॥ २९ ॥
 
अनुवाद
 
  जो तीनों लोकों को एक साथ बनाता, पालता और नष्ट करता है और जिसमें असीम दिव्य गुण हैं, उसके लिए शत्रु को परास्त करना आश्चर्यजनक नहीं है। फिर भी जब भगवान मानव के जैसे व्यवहार करते हुए ऐसा करते हैं, तो साधु-संत उनकी लीलाओं को महिमामंडित करते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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