श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 50: कृष्ण द्वारा द्वारकापुरी की स्थापना  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  10.50.24 
 
 
निर्भिन्नकुम्भा: करिणो निपेतु-
रनेकशोऽश्वा: शरवृक्णकन्धरा: ।
रथा हताश्वध्वजसूतनायका:
पदायतश्छिन्नभुजोरुकन्धरा: ॥ २४ ॥
 
अनुवाद
 
  हाथी भूमि पर गिर पड़े, उनके माथे फट गए, कटे हुए गले वाले घुड़सवारों के घोड़े गिर गए, रथ अपने घोड़ों, झंडों, सारथियों और मालिकों के साथ टूट-फूटकर गिर गए, और कटे हुए हाथ, जांघ और कंधों वाले पैदल सैनिक गिरकर मर गए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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