श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 49: अक्रूर का हस्तिनापुर जाना  »  श्लोक 29
 
 
श्लोक  10.49.29 
 
 
यो दुर्विमर्शपथया निजमाययेदं
सृष्ट्वा गुणान् विभजते तदनुप्रविष्ट: ।
तस्मै नमो दुरवबोधविहारतन्त्र-
संसारचक्रगतये परमेश्वराय ॥ २९ ॥
 
अनुवाद
 
  मैं उन भगवान को नमस्कार करता हूं जो अपनी भौतिक शक्ति के अविश्वसनीय कामों द्वारा इस ब्रह्मांड की रचना करते हैं और फिर सृजन में प्रवेश कर प्रकृति के विभिन्न स्वरूपों को बांटते हैं। जिसके मनोरंजन का अर्थ अथाह है, वही जन्म-मृत्यु का बंधनकारी चक्र और उससे मुक्ति पाने की प्रक्रिया भी लाए हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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