श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 49: अक्रूर का हस्तिनापुर जाना  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  10.49.25 
 
 
तस्माल्ल‍ोकमिमं राजन् स्वप्नमायामनोरथम् ।
वीक्ष्यायम्यात्मनात्मानं सम: शान्तो भव प्रभो ॥ २५ ॥
 
अनुवाद
 
  इसलिए, हे राजन्, संसार को सपने, जादूगर के मायाजाल या मन की कल्पना की तरह देखकर, बुद्धि से अपने मन को वश में करो और हे स्वामी! समभाव और शांतिपूर्ण बनो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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