मूर्ख व्यक्ति अपने जीवन, सम्पत्ति तथा सन्तान एवं अन्य सम्बन्धियों का भरण-पोषण करने के लिए पाप-कर्म में ही लगा रहता है क्योंकि वह सोचता है कि “ये वस्तुएँ मेरी हैं और इन्हें बनाए रखना मेरा धर्म है।” परन्तु अंत में ये वस्तुएँ सभी उसे छोड़कर चली जाती हैं, जिससे वह निराश हो जाता है।