श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 49: अक्रूर का हस्तिनापुर जाना  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  10.49.23 
 
 
पुष्णाति यानधर्मेण स्वबुद्ध्या तमपण्डितम् ।
तेऽकृतार्थं प्रहिण्वन्ति प्राणा राय: सुतादय: ॥ २३ ॥
 
अनुवाद
 
  मूर्ख व्यक्ति अपने जीवन, सम्पत्ति तथा सन्तान एवं अन्य सम्बन्धियों का भरण-पोषण करने के लिए पाप-कर्म में ही लगा रहता है क्योंकि वह सोचता है कि “ये वस्तुएँ मेरी हैं और इन्हें बनाए रखना मेरा धर्म है।” परन्तु अंत में ये वस्तुएँ सभी उसे छोड़कर चली जाती हैं, जिससे वह निराश हो जाता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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