श्रीशुक उवाच
इत्यनुस्मृत्य स्वजनं कृष्णं च जगदीश्वरम् ।
प्रारुदद् दु:खिता राजन् भवतां प्रपितामही ॥ १४ ॥
अनुवाद
श्री शुकदेव गोस्वामी ने कहा : हे राजन्, अपने परिवार के सदस्यों और ब्रह्माण्ड के स्वामी कृष्ण को इस प्रकार याद करके आपकी परदादी कुंतीदेवी दुख में रोने लगीं।