श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 49: अक्रूर का हस्तिनापुर जाना  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  10.49.14 
 
 
श्रीशुक उवाच
इत्यनुस्मृत्य स्वजनं कृष्णं च जगदीश्वरम् ।
प्रारुदद् दु:खिता राजन् भवतां प्रपितामही ॥ १४ ॥
 
अनुवाद
 
  श्री शुकदेव गोस्वामी ने कहा : हे राजन्, अपने परिवार के सदस्यों और ब्रह्माण्ड के स्वामी कृष्ण को इस प्रकार याद करके आपकी परदादी कुंतीदेवी दुख में रोने लगीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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