देहाद्युपाधेरनिरूपितत्वाद्
भवो न साक्षान्न भिदात्मन: स्यात् ।
अतो न बन्धस्तव नैव मोक्ष:
स्यातां निकामस्त्वयि नोऽविवेक: ॥ २२ ॥
अनुवाद
चूँकि यह कभी प्रदर्शित नहीं हुआ है कि आप भौतिक शारीरिक उपाधियों से प्रच्छन्न हैं अत: यह निष्कर्ष रूप में यह समझना होगा कि शाब्दिक अर्थ में न तो आपका जन्म होता है न ही कोई द्वैत है। इसलिए आपको बन्धन या मोक्ष का सामना नहीं करना होता। और यदि आप ऐसा करते प्रतीत होते हैं, तो यह आपकी इच्छा के कारण ही है कि हम आपको इस रूप में देखते हैं या कि हममें विवेक का अभाव है इसलिए ऐसा है।