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अध्याय 48: कृष्ण द्वारा अपने भक्तों की तुष्टि
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श्लोक 17
श्लोक
10.48.17
दिष्ट्या पापो हत: कंस: सानुगो वामिदं कुलम् ।
भवद्भयामुद्धृतं कृच्छ्राद् दुरन्ताच्च समेधितम् ॥ १७ ॥
अनुवाद
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[अक्रूर ने कहा] : यह हमारा भाग्य है कि आप दोनों प्रभुओं ने दुष्ट कंस और उसके अनुयायियों का वध कर दिया है, इसी प्रकार आपने अपने वंश को अंतहीन दुख से मुक्त करके उसे महान बनाया है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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